धामी सरकार ने निश्चित रूप से सभी अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को एक छतरी के नीचे लाने की योजना बनाई है, लेकिन वास्तव में इसका लक्ष्य मदरसों पर नकेल कसना है

धामी सरकार ने निश्चित रूप से सभी अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को एक छतरी के नीचे लाने की योजना बनाई है, लेकिन वास्तव में इसका लक्ष्य मदरसों पर नकेल कसना है
उत्तराखंड में चल रहे अवैध मदरसों को धामी सरकार ने बंद कर दिया है। जो पंजीकृत मदरसे चल रहे हैं, उनमें क्या पढ़ाया जा रहा है? इस संबंध में धामी सरकार को मिली रिपोर्ट के बाद मदरसा बोर्ड को ही खत्म करने की कवायद शुरू हो गई है। उत्तराखंड में 2023 में 416 पंजीकृत मदरसों में 45808 बच्चे अध्ययनरत थे, जिनमें से 23174 तहतानी यानी कक्षा एक से पांच तक, 17066 बच्चे फोकानिया यानी कक्षा 6 से 8 तक, जबकि 2496 बच्चे मुंशी मौलवी यानी कक्षा 9 से 10 तक अध्ययनरत थे।
जानकारी के अनुसार ये पंजीकृत मदरसे थे, जबकि अवैध मदरसों की संख्या 576 से अधिक बताई जा रही है, यहां भी लगभग़ 60 हजार बच्चे धार्मिक शिक्षा ले रहे थे। खास बात यह है कि मदरसा संचालक मुस्लिम लोगों से चंदा इकट्ठा करके बच्चों को शिक्षा देते हैं। सरकार ने सर्वेक्षण में पाया कि अधिकांश अवैध मदरसे उक्त दान का कोई हिसाब नहीं देते हैं और उनके संचालक आलीशान मकानों और बंगलों में विलासितापूर्ण जीवन जी रहे हैं। जबकि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों की हालत बहुत दयनीय है।
इस संबंध में उत्तराखंड बाल सुधार आयोग ने भी राज्य सरकार को एक रिपोर्ट दी थी जिसमें देहरादून की आजाद कॉलोनी स्थित एक मदरसे का जिक्र किया गया था।आयोग का कहना है कि मदरसों में शिक्षा का स्तर बेहद खराब और चिंताजनक है।बताया गया है कि ये अवैध मदरसे पहले यूपी या दूसरे राज्यों में चलते थे, लेकिन सरकार द्वारा वहाँ सख्त कार्रवाई करने के बाद ये उत्तराखंड में सक्रिय हो गए।
इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि झारखंड, बंगाल, असम, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों के बच्चे भी यहां धार्मिक शिक्षा ले रहे थे। उत्तराखंड सरकार ने भी जब देखा कि फर्जी आधार कार्ड बनाकर इन बच्चों को यहां पढ़ाया जा रहा है और कल को ये यहीं के निवासी बन जाएंगे, तो अवैध मदरसों पर ताला लगाने की कार्रवाई की गई और 237 अवैध मदरसे बंद कर दिए गए। कई मदरसा संचालक नैनीताल हाईकोर्ट भी गए लेकिन वहां से भी उन्हें यही जवाब मिला कि बिना रजिस्ट्रेशन के मदरसे नहीं खुलेंगे
दरअसल, अवैध मदरसा संचालक इसलिए पंजीकरण नहीं कराते क्योंकि उन्हें मदरसा बोर्ड के नियमों का पालन करना होता है। मदरसों के संचालन के लिए यह भी सिद्धांत बनाए गए हैं कि वहां बैठने, बिजली, पानी और साफ-सफाई की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, आय-व्यय का ब्यौरा देना होगा और उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम पढ़ाना भी अनिवार्य है। धामी सरकार द्वारा बंद करने की कार्रवाई के बाद इस वर्ष पंजीकृत मदरसों में बच्चों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है। संभवतः अवैध मदरसों के बच्चे पंजीकृत मदरसों में जा रहे हैं। दूसरी ओर, धामी सरकार ने यह भी पाया है कि मदरसों में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम केवल दिखावे के लिए पढ़ाया जा रहा है और संचालक केवल इस्लामी शिक्षा प्रदान करने पर ही केंद्रित हैं। वो क्या शिक्षा दे रहे है ? इस बारे में भी ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई
धामी सरकार अगले साल यानी 2026 के शैक्षिक सत्र से मदरसा बोर्ड की मान्यता समाप्त कर अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण के गठन को मंजूरी देने जा रही है। इस प्रस्ताव को विधानसभा से मंजूरी मिलना तय है..
वही उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण के गठन से सभी अल्पसंख्यकों को लाभ मिलने वाला है।इसमें न केवल मदरसे बल्कि सिख, पारसी, ईसाई, जैन, गोरखा, बौद्ध आदि अल्पसंख्यकों के स्कूलों को भी मान्यता दी जाएगी और उनकी संबद्धता उत्तराखंड शिक्षा विद्यालय बोर्ड से होगी। इसके साथ ही उन्हें धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ उत्तराखंड शिक्षा बोर्ड का पाठ्यक्रम अपनाना भी जरूरी होगा। धामी सरकार ने निश्चित रूप से सभी अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को एक छतरी के नीचे लाने की योजना बनाई है, लेकिन वास्तव में इसका लक्ष्य मदरसों पर नकेल कसना है। धामी सरकार का अध्यादेश लागू होते ही देवभूमि उत्तराखंड में मदरसा व्यवस्था खत्म हो जाएगी।
वही मुख्यमंत्री धामी ने देश में पहली बार ऐसा अध्यादेश लाकर एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी हैं। सीएम धामी ने साफ संकेत दिए हैं कि देवभूमि में मदरसे बंद किए जाएंगे और उनकी जगह यहां के बच्चों को बेहतर पाठ्यक्रम में शिक्षा दी जाएगी